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भटकती आत्मा भाग - 6

         भटकती आत्मा भाग ·6 

आकाश में काले-काले बादल आए हुए थे | रात्रि का आंचल स्याह था l  कभी-कभी बिजली की चमक और बादलों का गर्जन बस्ती वालों के मन में हर्ष का अंकुर प्रस्फुटित कर रहा था l बस्ती के कुछ लोग सो गए थे, और कुछ सोने की तैयारी कर रहे थे l मनकू अपने घर से साड़ी का पैकेट बगल में दबाए अघनु काका के घर की ओर चला जा रहा था l उसका मन उमंग के तरंग में डोल रहा था l घर का दरवाजा खुला पड़ा था l चिराग चारों ओर मंद मंद रौशनी फैला रहा था l अघनु काका उसको दरवाजे पर ही मिल गया l उसने कहा -  जोहार काका"|
  "खुश रहो बेटा तुम अभी तक सोए नहीं"?
" नहीं काका मैं बाजार से कुछ देर पहले ही लौटा हूं | ऊन बेचना था ना इसलिए गया हुआ था"|
"अच्छा बैठो खड़े क्यों हो"|
" मैं जल्दी घर जाना चाहता हूं, काम से आया था; जानकी कहां है"|
  "हां जानकी वह अंदर ही है"|
" अच्छा" कहता हुआ मनकू घर में प्रवेश कर गया l जानकी मनुकू को देखकर हर्षोल्लसित हो उठी l
  "कहो मनकू कैसे आए"|
    "मैं शहर से तुम्हारे लिए साड़ी लाया हूं पुरानी साड़ी अच्छी नहीं थी ना"|
  " क्यों लाए तुम" |
  "तुमको अच्छा नहीं लगता था इसलिए   लेता आया आखिर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है"| 
  "नहीं लूंगी मैं, और तुमसे अब बोलूंगी भी नहीं" | 
"अरे क्या हुआ तो l देखो जानकी, तुम मुझे अपना समझती हो या नहीं |"
" समझती तो हूं"| 
"तब अपनों से ऐसा बर्ताव नहीं किया जाता | मुझसे यह नहीं देखा जाता कि तुम अर्ध-नग्न रहो"|
जानकी की आंखें भर आईं l उसने कहा -   "मैं गरीब हूं इसका अर्थ यह नहीं कि कोई मेरी गरीबी का मजाक उड़ाए"|
  मनकू ने कहा -   "मैं भी तो गरीब ही हूं | तुम्हारे और मुझ में यही अंतर है कि मैं कमा लेता हूं | घर में कमाने वाले बहुत हैं इसलिए गुजर-बसर ठीक से हो जाता है | तुम अबला हो काका अकेले कमाते हैं, इसलिए गुजारा ठीक से नहीं होता है | इसलिए मैं तुम्हारा मजाक क्यों उड़ाऊंगा भला l अगर तुम मुझे अपना नहीं समझती हो तो दूसरी बात है"|
  "नहीं मनकू मैं तुम्हें अपना ही नहीं बल्कि अपने प्राणों से भी अधिक समझती हूं परंतु l लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम मेरे लिए परेशानी  उठाओ"|
   "नहीं जानकी अपनों के लिए कोई परेशानी नहीं होती"|
उन दोनों की बातों को सुनकर अघनु काका भी घर में आ गए थे l उन्होंने वस्तुस्थिति समझने की कोशिश की l उन्होंने पूछा -  "क्या बात है जानकी क्यों बिगड़ रही थी"|
  " देखो ना बाबा मनकू मेरे लिए साड़ी लाया है, क्या जरूरत थी इसकी"|
  "ओह ¡ हाँ बेटे, ठीक ही कहती है जानकी तुमको परेशान होने की क्या जरूरत थी"|
   "काका"| रूंधे गले से मनकू ने कहा - 
  ""मुझे आप लोग पराया समझते हैं ना | ठीक है मैं जाता हूं"| 
कहता हुआ मनकू आगे बढ़ा l अघनु काका ने मनकू की बाँह थाम ली l भाव विभोर होकर उन्होंने कहा -   "नहीं बेटे मेरा अपना बेटा तो नहीं है फिर भी मैंने तुम्हारे और जानकी में कोई अंतर नहीं समझा है l मैं जानता हूं - जानकी फटी पुरानी साड़ी पहनती है फिर भी मेरी आर्थिक स्थिति देखकर कभी कुछ नहीं मांगती | तुम अपना जानकर लाए हो, अगर तुम लौट जाओगे तो तुम्हारे दिल को ठेस पहुंचेगा | मैं यह कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मेरा बेटा दुखी हो जाए" l 
  मनकू का ह्रदय प्रसन्नता से गदगद हो उठा | उसने साड़ी जानकी की ओर बढ़ाया, जानकी ने साड़ी ले लिया | अघनु काका ने मनकू से बैठने के लिए कहा, परंतु मनकू ने कहा -  "नहीं काका मैं जा रहा हूं मेरा मन ठीक नहीं लग रहा है"|
"अच्छा बेटा जाओ, जाकर आराम करो"|
  मनकू ने मुस्कुराते हुए जानकी की ओर   निहारा और लौट गया और अपने घर की ओर l उसका मन कहीं और था, शरीर ही तो अघनु काका के घर पहुंचा था l वह   शीघ्रता से अपनी प्रेयसी की याद में डूब जाना चाहता था, इसलिए पग तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे उसके l
  
              ==========

    सावन का महीना l प्रकृति परी की सतरंगी छवि l कई दिनों से नीले नि:स्सीम गगन के वक्षस्थल पर बादल होड़ लगाकर दौड़ रहे थे l कभी हिरण की तरह छलांग मार कर मेघ का एक टुकड़ा मचल उठता था,तो कभी गंभीर स्वरों से अपने आगमन का संदेश देता हुआ भरा पूरा मेघ-खंड गजराज की तरह मंद गति से विचर रहा था | यदा कदा सूरज का रथ छिप जाता था,किरणें कातर होकर हतप्रभ हो उठती थीं l गगन के वक्ष पर देखते ही देखते इंद्रधनुष की सतरंगी माला प्रकृति ने गूँथकर पहना डाली l चारों ओर सरसता और हरीतिमा का साम्राज्य था l हरे भरे पत्तों पर भींगे मोती अटक गए थे l छोटे-छोटे लता पादप झूम झूम कर इस इत्र का रस ले रहे थे l बड़े वृक्ष मौन भाव से इस आशीर्वाद को ग्रहण कर रहे थे l
     रनिया गाँव के लोग कंधों पर हल लिए क्षेत्र की ओर इस प्रकार प्रयाण कर रहे थे मानो वे दुश्मन से युद्ध करने के लिए राइफल कंधों पर लिए देश की सीमा पर जा रहे हों l मनकू का मन जरा भी क्षेत्र- कर्षण की ओर नहीं था वह तो पर्वत के ऊपर बसे नेतरहाट की भूमि को अपने पैरों से सुशोभित करना चाहता था | प्रेम की नौका में बैठकर स्वप्निल संसार में खो जाना चाहता था l इसलिए शांत चित्त घर की दहलीज पर बैठा अवसर की खोज में था l पिता की आवाज ने शांति भंग कर दी -   "बेटा आकाश खुला है खेत पर चले जाओ,जोत लो सारे खेत को | कल धान का बिहन लगाना है"|
मनकू को अपने बाबा की बातों का विरोध करने की शक्ति नहीं थी | सदा से अपने बाबा की बातों को मानता आया था, आज कैसे विरोध करे | इसलिए गंभीर  मुख मुद्रा बनाता हुआ मनकू कंधों पर हल और हाथों में बैल का पगहा थामे  अपने खेतों की ओर चल पड़ा l उसके खेत पर्वत की उपत्याका में थे l उसने बैलों को हल में लगाया और अनमने भाव से खेत जोतने लगा l वह प्रेम में डूबा हुआ एक करुणा पूर्ण लोकगीत गाने लगा l उसकी आवाज पर्वत की घाटियों में गूंजने लगी l आसपास के खेतों को जोतने में लीन कृषक वर्ग अपना कार्यकलाप छोड़ छोड़कर उसके पास एकत्रित होने लगे l सब लोग उसके करुण गीत में डूब कर वाह-वाह करने लगे l
आंसू में डूबे सुरीले लोकगीत की झंकार पर्वत के वन प्रांत में बैठी हुई मैगनोलिया के कर्ण रन्ध्रों में प्रवेश करने लगी l वह भाव विह्वल होकर नीचे की घाटियों में बसी रनिया बस्ती की ओर जाने के लिए उतावली होने लगी l उसने इधर-उधर नीचे उतरने का मार्ग खोजा,परन्तु न मिला | मनकू से मिलने के लिए वह व्यग्र हो उठी, परन्तु मिलने का कोई मार्ग न था | 
  वह दु:खी हो दूरबीन से नीचे का दृश्य देखने लगी | गाँव के लोगों से घिरा हुआ मनकू गीत के ताल पर नाच रहा था l मैगनोलिया कभी-कभी मनकू पर झुंझला उठती थी,फिर यह सोचकर आश्वस्त हो जाती थी कि उसके जैसा मनकू दायित्व के बोझ से मुक्त नहीं है; इसलिए उसके प्रति लापरवाह होना स्वाभाविक है |
  दूरबीन की परिधि में अपने प्रियतम को निहारती हुई मैगनोलिया अपना संतुलन खो दी और चट्टान पर से लड़खड़ा कर गिर गई l उसके मुख से चीख निकल गई l
   "ओह गॉड" की तीव्र चीत्कार नीचे उपत्यका में गूंज उठी l अभी-अभी गीत समाप्त हुआ था और कृषक वर्ग लौट रहे थे अपने अपने खेतों की ओर l अचानक मनकू के कर्ण रन्ध्रों में जानी पहचानी   चीत्कार की लहर प्रवेश कर गई l उसका मन कांप उठा l मैगनोलिया के भावी दुर्घटना से आशंकित हो उठा वह l एक दो कृषकों ने कहा  -  "लगता है कोई औरत गिर पड़ी है"|
  मनकू ने कहा -  "हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है"|
  " चलो ऊपर चल कर देखते हैं"|
   मनकू  -  "नहीं तुम लोग मेरे हल बैल को देखो,मैं आ रहा हूँ देख कर"|
  कहता हुआ मनकू दौड़ने लगा ऊपर पर्वत पर जाने के लिए l एक गुप्त मार्ग था जिससे वह सभी ग्रामीण परिचित थे l मनकू उसी मार्ग से चला जा रहा था l ऊपर पहुँचकर चारों तरफ दृष्टि फेंकी उसने l कहीं भी नहीं दिखा कोई |
  पैर आवाज की दिशा का अंदाजा लगा कर एक दिशा में बढ़ गए l मनकू की दृष्टि मैगनोलिया से टकरा गई l मुस्कुराता हुआ उस की ओर बढ़ने लगा वह l मैगनोलिया ने उठकर मनकू की ओर बढ़ना चाहा परन्तु पैर ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया l वह लड़खड़ा कर वहीं बैठ गई l निकट पहुंच कर मनकू ने कहा -  
" क्या हुआ तुम्हें"?
  ओह हम टुमको दूरबीन से देखना मांगटा था, उसी से हम गिर गया इस पर से"|
  कहती हुई उसने एक छोटे से शैलखंड की ओर इशारा किया l
   मनकू -  "देखूं चोट तो नहीं आई"|
" इस पैर में चोट है" -   कहती हुई मैगनोलिया ने अपने बाएं पैर को मनकू  की ओर बढ़ा दिया l मनकू पैर को अपने कठोर हाथों से मलने लगा l मैगनोलिया के मुख से चीख निकल गई l
" पैर में मोच आ गया है"|
मनकू ने कहा फिर बिना और कुछ कहे वह बढ़ गया एक दिशा में l क़ुछ क्षण बाद हाथों में कुछ जंगली पत्ते लेकर आया l पत्तों को मसल कर उसके रस को मैगनोलिया के बाएं पैर में मल दिया l मालिश के समय मैग्नोलिया के मुख से हल्की हल्की चीख प्रस्फुटित हो जाती थी l कुछ देर के बाद मनकू ने कहा -  " डार्लिंग अब चल कर देखो"|
मैगनोलिया उठ खड़ी हुई l उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा,क्योंकि पैर में अब जरा भी दर्द न था l वह अब भली भांति  चल सकती थी l
  "टोम डॉक्टर भी हय"?  कहती हुई प्रसन्नता से वह झूम उठी l उसने एक सुंदर लाल पुष्प को डाली से अलग कर मनकू की कमीज में लगा दिया,और प्यार से एक चुंबन उसके कपोल पर दे डाली l
  मनकू खिल उठा l उसने मैगनोलिया के हाथों को अपने हाथ में ले लिया l कहा - 
   "तुम शाम तक मेरी प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी,डार्लिंग"?
   "डियर माइकल, हमको वेट करना पसंद नहीं है"?
    मनकू -  "कहो तो सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे अंक में बैठा रहूं"|
  " हां डियर हम भी यही चाहता है"|
  मनकू  -  "तुम ऐसा कर सकती हो मैगनोलिया, लेकिन मुझ गरीब को इतनी फुर्सत कहाँ"|
   यह बात तो है डियर, हम भी कितना फूल बन जाता हय"| 
   "तुम धैर्य रखो मैगनोलिया,मैं नित्य तुमसे शाम के अंधेरे में यहीं पर मिला करूंगा"|
  " ठीक है हम पेसेंस रखेगा"|
  मनकू  -  "क्या मैं तुम्हारे इन सुंदर हाथों को चूम लूं"?
  " क्यों नहीं, जो तुम्हारा मन मांगता है बेझिझक करो"|
  मनकू ने उसके सुंदर हाथों को  चूम लिया, और उन हाथों को अपने वक्षस्थल पर रख लिया; मानो कभी नहीं छोड़ने की कसम खा रहा हो l मैगनोलिया की आंखें प्रसन्नता से निमीलित को गईं l जब उसकी आंखें पलकों  की ओट से बाहर आयीं तब आश्चर्य पूर्ण शब्दों के मोती वातावरण में बिखर गये -  
" वंडरफुल ! एक्सीलेंट !! डियर  माइकल, देखो कितना अच्छा सीनरी है सूरज का" l
   मनकू  -  "हां डार्लिंग यहां से अस्त होते हुए सूर्य का दृश्य चित्ताकर्षक होता है"|
  " हम ऐसा सीनरी नहीं देखा था,अभी तक"| 
   कहती हुई मैगनोलिया बेझिझक मनकू के जांघों पर सिर रखकर लेट गई l मनकू होले होले उसके भूरे जुल्फों से खेलने लगा l इस प्यार के खेल में कब संध्या ने अपना काला आंचल वन्य प्रांत में बिखेर दिया उनको पता भी न चला l अब मनकू को अपने खेत का ध्यान आया l वह मैगनोलिया से बोला -  
  " डार्लिंग चलो अब चलते हैं"|
  " हां माइकल चलो,गुड नाइट डार्लिंग"|

      " गुड नाइट"|

    क्रमशः
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3 Comments

Babita patel

11-Sep-2023 11:15 AM

V nice

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kashish

09-Sep-2023 07:30 AM

V.Nice

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madhura

06-Sep-2023 05:10 PM

Nice

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